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वृक्ष की व्यथा


Contributed by आगम डाकोलिया, कक्षा ८ वीं D

पल पल जीवन का सृजन करते,
तीक्ष्ण ग्रीष्म में शीतल छाया धरते,
पत्र पुष्प फल से भरे लरजते,
अनगिन चिड़ियों के कलरव बसते |
      हे मानव, फिर क्यों हम ही कटते?
तेरे बच्चे हमारी शाखा पर झूलते,
माई बाबा अपनी थकान मिटाते,
तेरी प्रिया के अरमान सजते,
तेरी सारी खुशियों को हम अपनाते,
      हे मानव, फिर क्यों हम ही कटते?
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