CBSE Affiliation No. 1030239 Jhalaria Campus North Campus
CBSE Affiliation No. 1030239

मौन की शक्ति

Author: Mishti Maheshwari, Class VIII B

आरव अपने विद्यालय का एक मेहनती और आत्मविश्वासी छात्र था। अच्छे अंक लाने के कारण उसे अपनी क्षमता पर भरोसा था। उसका मानना था कि जो छात्र खुलकर बोलता है, वही सबका ध्यान खींचता है। शांत रहने वाले लोग उसे अक्सर पीछे रह जाने वाले लगते थे। उसी कक्षा में कबीर नाम का एक छात्र था। वह ज़्यादातर शांत रहता और कक्षा के आख़िरी बेंच पर बैठता था। वह कम बोलता था, लेकिन ध्यान से सबकी बातें सुनता था। आरव को लगता था कि इतना चुप रहने वाला छात्र किसी प्रतियोगिता में क्या कर पाएगा। 

कुछ दिनों बाद विद्यालय में वाद-विवाद प्रतियोगिता की घोषणा हुई। आरव ने पूरे उत्साह से अपना नाम लिखवा दिया। जब उसे पता चला कि कबीर भी भाग ले रहा है, तो वह थोड़ा हैरान हुआ। प्रतियोगिता के दिन आरव पहले मंच पर गया। उसने आत्मविश्वास के साथ भाषण दिया और उसे ज़ोरदार तालियाँ मिलीं। उसे लगा कि उसने बहुत अच्छा किया है। इसके बाद कबीर की बारी आई। वह थोड़ा घबराया हुआ था, फिर भी उसने शांत स्वर में बोलना शुरू किया। उसकी आवाज़ ऊँची नहीं थी, लेकिन उसकी बातें असरदार थीं। उसने मेहनत, संघर्ष और धैर्य के बारे में कहा—वे बातें, जिन्हें वह खुद समझता था। पूरा सभागार शांत हो गया।

जब परिणाम घोषित हुआ, तो प्रथम पुरस्कार कबीर को मिला। आरव को अपनी हार स्वीकार करने में कुछ समय लगा। कार्यक्रम के बाद वह कबीर के पास गया और बोला,“मैं समझ नहीं पा रहा कि तुम जीत कैसे गए।”कबीर ने हल्की मुस्कान के साथ कहा,“शायद इसलिए, क्योंकि हर बार ज़ोर से बोलना ज़रूरी नहीं होता। कभी-कभी शांत रहकर कही गई बात ज़्यादा असर करती है।”आरव ने सिर हिलाया और बोला,“आज मुझे समझ आ गया कि सच्ची ताकत आवाज़ में नहीं, सोच में होती है।”

SHARE ON