Author: Aditya Mishra, Class VII E
बहती थी नदियाँ सौम्य रूप में
देती थी स्वच्छ नीर असीमित
पर शायद भूल हुई मानव से
जो कर दिया उन्हें अनादरित
जब था स्वच्छ जल हमारे पास अपार
न माना हमने पुण्य सलिला का आभार
अब हो रही जब स्थिति विकराल
तो क्यों हो रहा ये मनुज लाचार
जल देते-देते स्वार्थी इंसानों को
सच में थक जाएँगे सारे जलधर
करते रहे अगर यूँ ही उथल-पुथल
न होगा कभी जन-जीवन निरापद
देर हुई नहीं है अभी, ऐ मानव !
लिख ले संधि-पत्र तू इस बात पर
अब भी पड़े रहे अक्ल पर पत्थर
तो याद रख, हालात होंगे अति विकट
हालात होंगे अति विकट ।