Author: Ms Archana Pandey, Educator
करुणा केवल एक भावना नहीं, बल्कि एक दृष्टिकोण है — ऐसा दृष्टिकोण जो मानव-जीवन को भीतर से समृद्ध करता है और समाज को मानवीय बनाता है। यह वह भाव है जो हमें केवल जीवित नहीं, बल्कि जागरूक बनाता है — दूसरों की पीड़ा को महसूस करने वाला, उसे समझने वाला और उस पीड़ा को कम करने की ओर सक्रिय करने वाला।
जब कोई मनुष्य करुणा का अनुभव करता है, तो उसमें केवल दया नहीं होती, बल्कि एक ऐसी संवेदनशीलता होती है जो उसे आत्मकेंद्रितता से बाहर लाकर दूसरों के जीवन में झाँकने की क्षमता देती है।
परिपक्व करुणा केवल भावुकता नहीं होती; वह विवेक से जुड़ी होती है — जहाँ व्यक्ति न केवल दुख को पहचानता है, बल्कि यह भी समझता है कि उस दुख के साये को उजालो में कैसे बदला जा सके।
आज विविध तकनीकी समझ ने मनुष्य की मशीनों से तो दूरी मिटा दी है, पर मनुष्य की मनुष्यता से दूरी बढ़ा दी है। आज अधिकांश लोग मन ही मन अकेले और आत्मकेंद्रित होते जा रहें हैं। सूचनाएँ बढ़ी हैं, लेकिन संवेदनाएँ कम हुई हैं। ऐसे समय में करुणा न केवल ज़रूरी है, बल्कि अनिवार्य है — ताकि हम फिर से मानव बन सकें, न की केवल भीड़ भर।
करुणा कोई दिखावा नहीं, कोई प्रदर्शन नहीं — यह एक आंतरिक स्पर्श है जो हमें इंसान से बेहतर इंसान बनाता है। यह वह अहसास है जो शब्दों के परे जाकर हमें जोड़ता है — व्यक्ति से व्यक्ति, मन से मन और अंततः आत्मा से आत्मा।
जहाँ करुणा होती है, वहाँ न्याय मौन होता है, पर प्रभावशाली होता है।
करुणा ही वह बीज है जिससे एक न्यायसंगत, समरस और सह-अस्तित्व पर आधारित समाज का सूर्य उगता है।
अंधेरों से मत हार मान,
तू अब भी तो उजियारा है।
ठहरे जल में भी कुछ सपने,
थामे तेरा किनारा है।
हर टूटे सपने की राख में,
छिपा कोई अंगारा है।
बस विश्वास रख तू खुद पर,
हर पत्थर में एक सहारा है।
थक कर बैठा है जो पथिक,
उसके मन में प्रश्न बहुत,
पर चलने का जो रखे जुनून,
तो हो लेंगे तेरे साथ बहुत।
आशा कोई जादू नहीं,
एक सीधी-सी समझ है ये —
जो गिरने के बाद उठाए,
बस अपने को परख तो ले।
जब सब द्वार बंद हो जाएँ,
तब भी खुला एक दर होगा ।
जिसे दुनिया कहती है हार
वही से शुरू आशा का एक घर होगा।
तो चल, जहाँ टूटे सपने हों,
वहीं नई सुबह बो दें हम।
हर अंधकार को देंगे मात,
ऐसी बने कुछ रोशनी हम।