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वो लम्हे शायद बीत गए

Author: Ritika Jain, Class VIII E

वो लम्हे शायद बीत गए

 

किसी ने मुझसे एक दफा मेरी पसंदीदा जगह का नाम पूछा था,

अब कैसे बताऊ मैं उन्हें, कोई जगह तो नहीं है मुझे पसंद।

कही भी रहू मैं, 

शहर बदलते है,

लहरें उठती हैं

या शायद सिर्फ़ कुछ रास्ते ही बदल से जाते हैं।

पर इन्हीं जगहों में मिले वो कुछ लोग,

कुछ लोग जो दिल से जुड़ जाते हैं।

 

स्कूल की वो आखिरी सीट जहां इतनी यादें बनाया करते थे हम,

अब कैसे बताऊं?

वही बेंच है तो आज भी,

पर अब वो यादें कही मिल-सी नहीं रही।

शायद वो यादें भी किसी चेहरे के साथ चली गई।

 

गलियां भी वही,

बस कदम थोड़े थामे हुए है सब।

क्योंकि शायद जिन कदमों के साथ चला करते थे हम,

वो भी किसी नई गली की ओर चल दिए।

 

शहर तो सिर्फ़ एक पर्दा ही है,

असली कहानियां तो लोग ही बताते है शायद।

 

शायद अब मैंने समझ ही लिया,

ये खेल सिर्फ जगहों का नहीं,

इनकी पीछे छुपे हुए उन चेहरों का है,

जो कभी किसी की छुपी रोशनी बने थे!

 

बस थोड़ा ठहर जाना

 

बस थोड़ा ठहर जाना

रुकना नहीं तू मेरे लिए, बस थोड़ा ठहर जाता।

समय को भी थोड़ा सा समय देकर जरूर जाना।

जो तूफान आया था जिंदगी में,

उसे भी शांत करके जाना,

जिंदगी को भी एक आखिरी मौका देके जाना।

रुकना नहीं तू मेरे लिए, बस थोड़ा ठहर जाना।

 

हर अंधेरे को रोशनी की तलाश है,

हर उजाले को बस तेरी ही आस है,

हर आंसू को मुस्कुराहट की ही प्यास है।

 

हर कदम शायद भटक रहा होगा अभी,

मंजिल शायद नहीं मिली होगी कभी।

बस हार न तू मान जाना।

रुकना नहीं तू मेरे लिए, बस थोड़ा ठहर जाना।

 

ये सिर्फ़ वक़्त है, तुम्हारी जिंदगी नहीं,

शायद ये पल भी बीत जाएंगे कभी,

यादें रखी रहेंगी किसी डिब्बे में कहीं,

शायद मेरे दर्द की कहानी सुनाना चाहेंगे सभी।

रुकना नहीं तू मेरे लिए, बस थोड़ा ठहर जाना।

 

समय को थोड़ा समय देकर तो देखना,

वक़्त को ज़रा आज़माकर तो देखना,

जो आज लगता है एक छोटी सी जीत सा,

क्या पता बन जाए कल वो एक त्योहार सा।

रुकना नहीं तू मेरे लिए, बस थोड़ा ठहर जाना।

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