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Fun Fair – 1
जमाल और जेम्स
मनस्व नंदेश्वर, Class X C
जमाल अपना नाम, अपनी संस्कृति और अपनी भाषा, सब अपने नए नाम ‘जेम्स’ में गँवा चूका था | न्यू यॉर्क की सड़कों पर, भीड़ के साथ चलते हुए भी वह अकेलापन महसूस कर रहा था | उसकी ज़िन्दगी में कुछ तो कमी थी | पैसा तो उसकी चाल, ढाल, स्वभाव, सब में झलकता था | मालूम हुआ कि कमी थी तो माँ के प्यार की |
“माँ अकेले गाँव में कैसे रहती होगी?” यह सोचकर उसका कलेजा भर आया | झट-पट फोन निकालकर माँ की न्यू यॉर्क की टिकट्स बुक कर ली |
दो हफ़्ते बीत गए और माँ अपनी पेटी थामे एअरपोर्ट पर जमाल का इंतज़ार कर रही थी | पहली बार में न तो जमाल माँ को पहचान पाया और न माँ जमाल को | वह तो एक माँ की ममता ही थी जो अपने बेटे को उसकी आँखों में ढूंढ सकी |
घर पहुंचकर ‘जेम्स’ ने अपनी पत्नी ‘जेनिफर’ से उसे मिलाया | जेनिफर के माता-पिता भी थे तो दोनों भारतीय, पर भारतीयता का एक भी कण जेनिफर में नहीं झलकता था |
घर की स्थिति कुछ बिगड़ सी गयी थी | पुराने ख़यालात और मॉडर्न सोच के बीच आए दिन तकरार होने लगी थी | जमाल अपने अतीत की खुशियों को वर्तमान के प्यार के साथ नहीं तौल सकता था |
माँ ने आखिर में हाथ खड़े कर लिए और वापस भारत लौटने का मन बना लिया |
जाते-जाते एक लिफ़ाफ़ा छोड़ गयी – जान-बूझकर या अनजाने में, यह जमाल न जान सका | लिफ़ाफ़ा खोला तो पाया की उसमे उसकी बचपन की तस्वीरें हैं | कैसे वह मिट्टी में खेलता था, और कैसे अब वह सूट-बूट पहना फिरंगी बन गया, उसे आश्चर्य हुआ |
उसे अहसास हुआ की असलियत में वह एक भारतीय माँ का प्यार था, जिसकी उसके ह्रदय में कमी थी |
प्रदूषण का पैर सब पर भारी
दिव्य सिंघल, Class IX E
प्रदूषण का पैर सब पर भारी,
धरती पर हुई मुसीबत जारी |
गाड़ियों का तो कहर है,
धुंए की तो लहर है |
प्रदूषित हो रहे ये शहर हैं,
धुंए की तो लहर है |
प्रदूषण का पैर सब पर भारी,
धरती पर हुई मुसीबत जारी |
यहाँ तो फैक्ट्रीयों की रेस है,
गन्दगी फ़ैल रही बड़ी तेज़ है,
नदियों को दूषित कर रहा आदमी,
जबकि उनको ही पूजता भी है आदमी |
प्रदूषण का पैर सब पर भारी,
धरती पर हुई मुसीबत जारी |
धरती माता को मत रुलाओ,
प्रदूषण को तुम दूर भगाओ |
यदि और प्रदूषण फैलेगा,
कोई भी इसको न झेलेगा |
प्रदूषण का पैर सब पर भारी,
धरती पर हुई मुसीबत जारी |
प्रदूषण फैलेगा तो कैंसर बढेगा,
तभी तो इंसान इससे लडेगा |
बीमारी होने से पहले लड़िये,
बीमारी का इंतज़ार न करिए |
प्रदूषण का पैर सब पर भारी,
धरती पर हुई मुसीबत जारी |
प्रदूषण को जल्द रोकिये,
इसे फ़ैलाने वालों को टोकिए |
पड़ा मिले जहाँ कहीं कूड़ा,
उसे उठाकर कूड़ेदान में फैंकिए |
प्रदूषण का पैर सब पर भारी,
धरती पर हुई मुसीबत जारी |
प्रदूषण का पैर सब पर भारी,
धरती पर हुई मुसीबत जारी |
माँ
वसुधा गुप्ता, Class VIII B
माँ होती है सबसे प्यारी,
लगती मुझे सदैव न्यारी |
सही-ग़लत की पहचान बताती,
कभी न लड़ाई को बढाती |
जब रोते तब समझाती,
जब गिरते तब उठाती |
कभी न भेद-भाव दिखाती,
ग़लत के पक्ष में कभी न जाती |
हमेशा सत्य का मार्ग दिखाती,
मातृभाषा से पहचान कराती |
इस दुनिया में हमें वो जन्म देती,
दिन-रात बैठकर हमें वो खिलाती |
‘क’ से ‘ज्ञ’, ‘अ’ से ‘अः’ ये सब उन की ही रहमत,
यही है दिन-रात की उसकी मेहनत |
माँ की ही आँचल ने हमें पाला,
माँ से ही हमारी रगों में खून दौड़ा |
रोज़ हमें वो प्रोत्साहित करती,
रोज़ हम पर प्यार लुटाती |
माँ होती है सबसे प्यारी,
लगती मुझे सदैव न्यारी |
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तिरंगे सा मस्तक
अबीर श्रीवास्तव, Class X D
भारत की गिनती आज विकासोन्मुख देशों में होती है | परन्तु एक कटु सत्य यह भी है भारत का एक वर्ग है जो ऐसे गाँव, बस्तियों में या शहरों की चालों या गलियों में बसता है जहाँ जीवन प्रगतिशीलता से आज भी कोसो दूर है |
ऐसे ही भारत के किसी अनजान, अविकसित हिस्से में प्रेम नामक बीज में देशभक्ति के अंकुर धीमे-धीमे फूट रहे थे | तेरह वर्ष की छोटी से आयु में प्रेम को विकास और पश्चिमीकरण में अंतर समझ आ गया था | वह किसी भी अन्य भारतवासी की भान्ति देशप्रेम की मात्र बातें नहीं करता था, बल्कि देश के प्रति उसके ह्रदय में जूनून था |
धन के अभाव में, टपरियों पर चाय बेचकर उसने अपनी विद्यालयीन शिक्षा प्राप्त कर ली | तत्पश्चात, छात्रवृत्ति के बल पर कॉलेज में भी दाखिला ले लिया | हर क्षण अमीर बिगड़े छात्रों के मध्य वह अपनी फटी जीन्स और टूटी सायकल को देखता तो प्रेम के चेहरे पर एक संतुष्टि भरी मुस्कान आ जाती |
छः वर्षों के संघर्ष के पश्चात् उसे इंग्लैंड से नौकरी का प्रस्ताव आया | वह देश छोड़ना तो नहीं चाहता था पर अपने माता-पिता का नाम रोशन करने के लिए वह चला गया |
अंग्रेज उसके संस्कारों और कुशलता को देख प्रसन्न हुए | प्रेम के लिए विकास के सारे मार्ग खुल रहे थे | परन्तु उनकी एक शर्त को प्रेम ने सिरे से नकार दिया |
अंग्रेज चाहते थे की तिरंगे के स्थान पर प्रेम अपने केबिन में विदेशी झंडा लगाये |
प्रेम ने कहा, “तिरंगे सा ऊंचा मेरा मस्तक कभी नीचे नहीं हो सकता |”