सम्यक श्रीमाल, आदित्य तिवारी, देबांशी बंसल, अस्मि चेलावत, कक्षा ८वीँ A
काँच के एक बड़े से घड़े में
इठलाती-बलखाती ये मछलियाँ
अपने अलग रंग-ढंग से
घर की शोभा बढ़ाती ये मछलियाँ
समुद्र छोड़कर हमारे घर में
हमारा मन बहलाती मछलियाँ
अपनी स्वतंत्रता त्याग कर
सागर की गहराई नापकर
अपने दुःख-दर्द को पल-पल
आँखों से दर्शाती मछलियाँ
अपने विविध रंगों में लिपटी
सुन्दर दिखती ये मछलियाँ
अपने मन की व्यथा को
कैसे सबको समझाए मछलियाँ
नदियो के मीठे पानी का
स्वाद भूलती हैं ये मछलियाँ
असीम समुद्र में भ्रमण करने का
मज़ा भूलती ये मछलियाँ
जीवन का हर रस भुलाकर
छटपटा कर मर जाती ये मछलियाँ
मनुष्य ने अब हद कर दी
क्यों इनकी ज़िन्दगी बदतर कर दी
अपने मन में निराशा लेकर
दुनिया से आज़ाद हो जाती ये मछलियाँ
ज़रूर एक दिन ऐसा आएगा
जब मनुष्य इसकी सज़ा पाएगा