Author: shish_admin
कक्षा को पत्र
दिति, फ़ातेमा, दिशिका, चिरायु, देवांग, दिव्य, Class IX E
अपनी कक्षा को समय प्रबंधन व् अनुशासन का महत्त्व बताते हुए पत्र लिखिए |
समूह दो
कक्षा नवीं ‘ई’
०३.०३.२०१६
कक्षा नवीं ‘ई’
नमस्ते !
उम्मीद है आप सभी कुशल होंगे और आने वाले वार्षिक परीक्षाओं के लिए कड़ी मेहनत कर रहे होंगे |
विद्यार्थी जीवन विद्याओं, कलाओं और शिल्पों के शिक्षण का काल है जिनसे छात्र जीवन के दायित्वों का वहन कर सके |
नियमित जीवन जीने का प्रयत्न ही अनुशासन है | विद्यार्थी जीवन में इसका विशेष महत्त्व है | जो विद्यार्थी जीवन में उचित अनुशासन में रहकर समय व्यतीत करे, उसका जीवन-क्रम ऐसे ऐसे व्यवस्थित तथा सफल मार्ग पर चलने का अभ्यस्त हो जाता है कि वह विद्यार्थी जीवन में सफ़लता पाता ही है और उसकी क्षमता का विकास होता है |
जीवन में एक-एक पल अत्यंत महत्त्वपूर्ण है क्योंकि ईश्वर द्वारा किये गए अनमोल जीवन की सौगात को हम एक क्षण भी बढ़ा नहीं सकते | अतएव इन पलों का सदुपयोग करते हुए जीवन को हम सफ़ल-सार्थक बना सकते हैं |
अगर आप भी अनुशासन और समय प्रबंधन का ध्यान रखेंगे तो अवश्य सफ़ल होंगे |
परीक्षाओं के लिए ढेरों शुभकामनाएँ !
आपके मित्र
दिति, फ़ातेमा, दिशिका, चिरायु, देवांग, दिव्य
द्रौपदी
ख्याति व्यास, Class X A
अग्नि से जन्मी वह अग्नि-सुता, द्रौपदी था नाम |
जन्म से ही उपेक्षित, पितृ-प्रेम पर पड़ा था विराम |
महाभारत नामक महान गाथा में, थी वह महत्त्वपूर्ण पात्र,
परन्तु क्या यही था उसका अस्तित्व मात्र ?
एक मोहरे की तरह चली गई उस पर नियति की हर कुटिल चाल,
एक स्त्री के रूप में क्या जानना चाहा किसी ने उसका हाल ?
माँ कुंती के वचन का करते हुए सम्मान,
उसने स्वीकार किया पाँचों पांडवों की पत्नी का स्थान |
ऐसी वीरांगना को मेरा प्रणाम !
जिसने हर स्थिति में बनाये रखा अपना गौरव और स्वाभिमान,
बुद्धि, आत्मविश्वास और विवेक थे उसके बल,
इस समर्पण का क्या मिला कभी कोई फल ?
उठे हर ओर से सवाल – क्या थी वह पवित्र ?
कठघरे में आया उसका चरित्र,
कृष्ण की सखी ने मुस्कराहट से सहा हर चुभता सवाल,
और सोचा की क्या अपेक्षा की जाए जब पिता ने ही पुत्री के
जीवन में मांगे थे असंख्य बवाल |
उसके अप्रतिम सौन्दर्य को निखारता आत्म-सम्मान का आभूषण
भी हुआ हैवानियत का शिकार,
जब उस शर्मनाक सभा में अथार्म ने मचाया हाहाकार |
द्रौपदी की पीड़ा और कौरवों की दरिंदगी शायद थे धर्म,
क्योंकि न्यायप्रिय, धर्मी युधिष्ठिर ने नहीं रुकवाया यह कुकर्म |
कहाँ थी अर्जुन की शस्त्र भक्ति ?
कहाँ थी भीम की अपार शक्ति ?
जो मौन रहकर सुनते रहे पांचाली की चीख,
जो प्रतिपल, प्रतिक्षण मांग रही थी सहायता की भीख |
अंधियारे भरे मार्ग में आशा की किरण था कृष्ण का साथ,
जब धर्म की झिलमिलाती लौ को भी न दे पाई अधर्म की प्रचंडता मात |
प्रतिशोध और अपमान के मध्य भी,
उसने धर्म निभाया एक आदर्श पत्नी का ही,
माँगा पतियों की आज़ादी का दान |
एक कृष्ण ही थे, जिनकी कृपा से चोटिल न हुई एक नारी की शान,
एक ऐसे जीवन में जिसमे पंखुडियां थीं कम, ज्यादा थे कांटे |
हर चुनौती का साहस से सामना किया, वनवास के विषम वर्ष भी काटे,
पांडवों की परम हितैषी बन गई वह, अज्ञातवास में एक दासी,
इन्द्रप्रस्थ में पिता, भाई व पुत्रों की भी दी आहूति |
क्या अब भी नहीं जागी आपकी सहानुभूति ?
इतिहास में सदैव होता रहा पांडवों का महिमागान,
परन्तु कब मिलेगा इस अदभुत, अद्वितीय व्यक्तित्व को उसकी गरिमामय पहचान ?
जब अन्य महान हस्तियों के सामान गर्व से लेंगे उसका नाम
और कहेंगे कि महाभारत की नायिका हमारी शान ?
धरती माता
श्रुति बियाणी, Class IX D
धरती हमारी माता है,
इसको तुम प्रणाम करो,
बनी रहे इसकी सुन्दरता,
ऐसा तुम कुछ काम करो |
कहीं पेड़ हैं तो कहीं झरने,
परन्तु लगे हैं अब ये मरने |
मनुष्य ने जबसे विकास किया,
धरा को सिर्फ नुक्सान दिया |
नदी में जब मैल है पड़ता,
शुद्ध जल के लिए हमें लड़ना पड़ता |
पेड़ों को जब कोई काटता,
मानो विनाश को वह बुलाता |
मनुष्य देखता अपना स्वार्थ,
यही है जीवन का कटु यथार्थ |
धरती हमें है बहुत कुछ देती,
बदले में सिर्फ यही मांगती,
रोती है ये हमारी माता,
सिर्फ पुकारती एक सुरक्षा छाता |
यदि धरती नहीं रहेगी,
ये सारी जन-जातियां कैसे बचेंगी?
हम युवाओं को कुछ करना होगा,
इसे बचाने का प्रण करना होगा |
एक पौधा, हर साल,
तभी हटेगा यविनाशकाल,
हमें धरती को बचाना होगा,
इसे नया जीवन प्रदान करना होगा |
धरती बचाओ, विनाश भागो ||
Shades of Life – 4
Shades of Life – 3
Shades of Life – 2
Shades of Life – 1
माँ की पुकार
सेल्वी कटारिया, Class IX D
बचाओ! बचाओ!
मुझे बचाओ !
धरती माँ कर रही पुकार,
मनुष्यों ने उसे किया लाचार,
फूट-फूट कर वह रो रही है,
पर मनुष्य जाति तो सो रही है !
क्यों ये प्रथ्वी हुई बेचारी,
कूड़े-कचरे की यह मारी,
चारों ओर फैला प्रदूषण,
धुंधले पड़े इसके आभूषण,
वृक्षों को हम काट रहे हैं,
जंगलों को हम बाँट रहे हैं,
कट-कट कर बंट गए पेड़,
हम चरें अकेले जैसे भेड़,
चाहे भूमि हो या हो आकाश,
धरती का हुआ विनाश
हो गई अब वह निराश,
बचाओ! बचाओ!
मुझे बचाओ !
धरती माँ कर रही पुकार,
फिर क्यों हमने किया उसे लाचार?
सेशल जैन, Class IX D
जन्म-जन्मों से धरती माँ ने
तन-मन-धन से हमें पाला है,
परन्तु हमने अपनी माँ को
तडपा तड़पाकर मारा है |
कचरा कूड़ा धुआं प्रदूषण
ने धरती को तड़पाया है,
परन्तु बिना स्वार्थ के धरती ने
हमें पाल-पोस कर बड़ा किया है |
धरती माँ की आवाज़
आज हमें पुकारती है,
दर्द से कराहती यही पुकार
मुझे आश्चर्य से भर जाती है |
क्या हम बच्चों को अपनी
माँ की रक्षा नहीं करनी चाहिए?
यह तो हमारा धर्म है, कर्म है,
जो पूरी क्षमता से करना चाहिए |
माँ का प्यार
रोहन त्रिपाठी, Class VIII D
रेखा और आलोक के छोटे से परिवार में जब ईशान पैदा हुआ तो उनकी खुशियों का ठिकाना नहीं रहा | ईशान के साथ दोनों इतना खेलते की आलोक तो एक बच्चा ही बन जाता | इसी तरह कई साल बीत गए और ईशान बड़ा हो गया |
ईशान अब आठवी में आ गया था | वह पढने में होनहार और खेल में भी अच्छा था | आलोक और रेखा को उसपर गर्व था | ईशान भी अपने माता पिता से बहुत प्यार करता था | उन्हें अपना दोस्त मानता था |
पर जैसे जैसे वह बड़ी कक्षा में आया, वह अपने स्कूल के दोस्तों के साथ ज्यादा समय बिताने लगा | वह घंटों अपने कमरे में बंद होकर फ़ोन पर बातें करता रहता | कहीं जाते समय अगर उसकी माँ उससे पूछती की वो कहाँ जा रहा है, और किसके साथ जा रहा है, तो ईशान पलट कर उन्हें बुरी तरह जवाब देता था | रेखा को यह बात अच्छी नहीं लगती पर बेटा बड़ा हो रहा है सोचकर चुप रहती | आलोक भी परेशान था पर क्या करे कुछ समझ नहीं आता | रेखा घंटों ईशान के बचपन की तस्वीरें सीने से लगाकर बैठी रहती और उसके विडियो देखती | पर ईशान तो जैसे अपने माता पिता को भूल ही गया था |
एक दिन जब ईशान अपने दोस्त के घर जा रहा था, रेखा भी सब्जी लेने बाज़ार आई थी | ईशान ने जैसे ही दूसरी तरफ से आती अपनी माँ को देखा, वह तुरंत पलटकर फ़ोन पर बातें करने लगा | उसका ध्यान नहीं गया की एक ट्रक तेज़ी से उसकी ओर आ रहा था | रेखा ने देखा तो वह दौड़ती हुई आई और ईशान को जोर से धक्का देकर उसे हटा दिया | ट्रक ने रेखा को टक्कर मार दी |
रेखा कई दिन अस्पताल में भर्ती रही | उसे बहुत चोट आई थी | जान बच गई यह भगवान् का वरदान था | ईशान को अपनी ग़लती का अहसास हुआ | वह माँ के पास गया और उसके पैरों से लिपट कर रोने लगा | रेखा ने उसे गले से लगा लिया |
रेखा को जब अस्पताल से छुट्टी मिली, वह घर आ गयी | ईशान अब अपने परिवार के साथ वक्त बिताने लगा | उनका छोटा परिवार पहले की तरह खुशहाल हो गया |